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Swadhinta Sangram me Rajasthan ki Ahautiyan (1805-1947) (Hindi)

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Swadhinta Sangram me Rajasthan ki Ahautiyan (1805-1947) (Hindi)

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यह एक हृदयवेधी विडम्बना है कि राजस्थान प्रायः स्वयं से ही अनजान है। ब्रिटेन की गुलामी की पाश को काटने के लिये हुए दीर्घ संघर्ष में जहाँ देश के अन्य हिस्सों की सहभागिता का पर्याप्त विवेचन हुआ हैए वहीं इस मुक्ति संग्राम में राजस्थान के योगदान की तो चर्चा होती है और ही नई पीढ़ी को इससे अवगत कराया जाता है। त्रासदी यह है कि स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भी इस थाती को उजागर करने की कोई चेष्टा नहीं हुई। फलतः राजस्थान की छवि ब्रिटिश सत्ता की फरमाबरदार निरंकुश सामंती.व्यवस्था के घटाटोप से आच्छादितए स्वाधीनता संग्राम ही हलचल से उदासीन प्रदेश की बन गई। जबकि हक़ीक़त सर्वथा भिन्न है। सच तो यह है कि इस प्रदेश में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा अपने पैर पसारे जाने के समय से ही उसका प्रतिरोध प्रारंभ हो गया था। उन्नींसवी सदी के उषाकाल से लेकर देश के स्वाधीनता प्राप्ति तक राजस्थानी लोग इस दिशा में सक्रिय रहे। उस अनकही कहानी को प्रमाणों सहित सिलसिलेवार प्रस्तुत करना इस कृति का केन्द्र बिन्दु है। अभिलेखागारों में उपलब्ध सामग्री के अलावा इस सम्बन्ध में प्राप्त साहित्यिक साक्ष्यों का प्रचुर मात्रा में उपयोग इस कृति की विशिष्टता है। इतिहास लेखन की प्रचलित शुष्क परिपाटी से परे इसमें प्रस्तुत सभी तथ्य एवं विवरण भाषायी लालित्य का दिग्दर्शन भी हैए जो इसकी पठनीयता रोचकता की अभिवृद्धि करते हैं।

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