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शुष्क क्षेत्र जैसे विषम परिस्थितियों के रहवासी विभिन्न चुनौतियों के प्रति परिवर्तनात्मक रहे हैं। जलवायवीय कठोरता के नियंत्रण हेतु सामुदायिक संसाधनों का संरक्षण और विभिन्न भू-उपयोग में वृक्षों का संवर्धन एवं सुरक्षा इसके कुछ उदाहरण हैं। पन्द्रह अध्याय में विभाजित इस पुस्तक के प्रथम 5 अध्याय राजस्थान के प्राकृतिक और मौषमीय स्थिति, शुष्क क्षेत्रों की पारिस्थितिकी, भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण, इसके आर्थिक मूल्यांकन और इनकी बहाली व पुनर्वास हेतु विभिन्न दृष्टिकोणों एवं कार्य नीतियों की जानकारी प्रस्तुत करते हैं। अध्याय 6 व 7 में मृदा अपरदन व रेत बहाव नियंत्रण, लवणता व क्षारीयता, जल जमाव और अपशिष्ट जल प्रवाह से प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वासन के उपाय का प्रस्तुतिकरण है। अध्याय 8-10 में आनुवंशिक सुधार द्वारा बेहतर बीज, क्लोन, जीनोटाइप एवं गुणवŸाापूर्ण पौध तैयार करने एवं लगाने की विधि निरूपित है। वर्षा जल संग्रहण एवं संचयन के विविध उपाय, प्रत्यक्ष बीज बुआई एवं पुनरुद्भवन को प्रोत्साहित कर अवक्रमित और अनुक्रमित वनों के पुनस्र्थापन को समझ्ााया गया है। अध्याय 13, 14 व 15 नर्सरी और रोपणों में लगने वाले भिन्न कीट और रोग, वृक्ष विकास और उनके उपज के पूर्वानुमान हेतु विभिन्न समीकरणों एवं माॅडलों के उपयोग और आमजन की वनों के प्रति धारणा और वन प्रबंधन में जन भागीदारी को शामिल किया गया है।
इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य पाठकों को भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और शुष्क क्षेत्र तथा इसके जैव-पारिस्थिकी के विषय में समुचित उद्धरण द्वारा व्यापक ज्ञान प्रस्तुत करना है, जिससे पुनर्वासन द्वारा वृक्ष और वन आच्छादन में वृद्धि, क्षेत्र की लचीलता और लोगों की आजीविका बढ़ाने तथा पर्यावरणीय स्थिति में सुधार लाने में मदद मिल सके। शिक्षाविद, शोधकर्ता, वन प्रबंधक, गैर सरकारी संगठन, विस्तार संस्था और पर्यावरणविद आदि एक दीर्घावधि लाभ हेतु वन तंत्रों के विकास, संरक्षण और प्रबंधन में इसका उपयोग कर सकते हैं। यह पुस्तक पारिस्थितिकी, सामाजिक व आर्थिक सेवाओं हेतु पुनस्र्थापन, सुरक्षा और संरक्षण के लिए प्रभावी योजना बनाने में नीति निर्माताओं के लिए भी उपयोगी है।
1. राजस्थान की पृष्ठभूमिः एक संदर्भ
1. स्थिति
2. प्राकृतिक भूगोल
2.1 पश्चिमी रेतीली समभूमि
2.2 अरावली पर्वतमाला और पहाड़ी क्षेत्र
2.3 पूर्वी समभूमि क्षेत्र
2.4 दक्षिण पूर्वी राजस्थान पठार
3. जलवायु
3.1 तापमान
3.2 वर्षा
3.3 आद्र्रता और नमी
3.4 हवाएं और आँधियाँ
3.5. सौर विकिरण
4. जलवायु क्षेत्र
5. जल निकासी और जल संसाधन
5.1 जल निकासी व्यवस्था
5.2 जल स्रोत
6. चट्टानें तथा मृदाएँ
6.1 राजस्थान में चट्टानें
6.2 राजस्थान में मृदाएँ
6.3 मृदा उर्वरता
7. भू-उपयोग पद्धति
7.1 गैर कृषि उपयोग भूमि
7.2 बंजर तथा अकृष्य भूमि
7.3 गोचर भूमि/स्थायी चरागाह
7.4 विविध वृक्ष तथा उपवनों के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्र
7.5 कृषि योग्य बेकार पड़ी भूमि
7.6 पड़त भूमि
7.7 कृषि भूमि
7.7.1 सिंचाई होने वाला क्षेत्र
7.8 वन क्षेत्र
8. सामाजिक अर्थव्यवस्था
8.1 जनसंख्या
8.2 पशुधन संख्या
8.3 सामाजिक-आर्थिक सूचकांक
9. निष्कर्ष तथा परामर्श
2. शुष्क क्षेत्रों का पारिस्थितिकीय ज्ञान
1. प्रस्तावना
2. भूमि तथा जल
3. जैव विविधता
3.1 वनस्पतियाँ
3.2 वन क्षेत्र
3.3 वन्य-जीव
4. मानव व पशुधन
5. राजस्थान की पारिस्थितिकी
5.1 राजस्थान में जलवायु परिस्थिति
5.2 जनसंख्या वृद्धि तथा गतिकी
5.3 राजस्थान में पशुधन
5.4 भूमि उपयोग पद्धति
5.4.1 गैर-कृषि उपयोग के अधीन क्षेत्र
5.4.2 बंजर तथा असंवर्धनीय भूमि
5.4.3 चारागाह भूमि
5.4.4 विविध-वृक्ष फसल व उपवन भूमि
5.4.5 कृषि योग्य बंजर भूमि
5.4.6 सामयिक परत भूमि
5.4.7 कृषि
5.4.8 राजस्थान में वन
5.5 प्राकृतिक वनस्पतियाँ
5.5.1 पश्चिमी राजस्थान की वनस्पतियाँ
5.5.2 दक्षिणी और पूर्वी राजस्थान की वनस्पति
6. निष्कर्ष तथा सुझ्ााव
3. मरुस्थलीकरणः शुष्क क्षेत्रों में भूमि का अवक्रमण
1. प्रस्तावना
2. शुष्क क्षेत्र पारितंत्र के कार्य
3. मरूस्थलीकरण का निरूपण
4. मरूस्थलीकरण के कारण
4.1 मृदा का वायु द्वारा अपरदन
4.2 जल अपरदन
4.3 खनन गतिविधियाँ तथा खदान-अपशिष्ट (व्यर्थ)
4.4 वनस्पति/वन अवक्रमण
4‐5 जल आप्लावन तथा लवणीयता
4.6 गहन कृषि तथा मृदा गुणह्नास
4.7 बढ़ता औद्योगिकीकरण तथा औद्योगिक अपशिष्ट
4.8 भू जल की कमी
5. मरूस्थलीकरण निर्धारण तथा मानचित्रण
6. मरूस्थलीकरण का विस्तार
6.1 वैश्विक मरूस्थलीकरण
6.2 भारत में मरूस्थलीकरण
6.3 वन अवक्रमण
7. निष्कर्ष तथा परामर्श
4. भूमि क्षरण के आर्थिक प्रभाव
1. भूमि क्षरण-एक परिचय
2. भूमि क्षरण के प्रभाव
2.1 उत्पादकता पर प्रभाव
2.2 सामाजिक-पारिस्थितिकी पर प्रभाव
2.3 जल और हवा की गुणवŸाा पर प्रभाव
3. दृष्टिकोण और विधियाँ
3.1 प्रतिस्थापन मूल्य दृष्टिकोण
3.2 गैर-बाजार दृष्टिकोण
3.2.1 हेडोनिक मूल्यांकन
3.2.2 आकस्मिक मूल्यांकन विधि
3.2.3 विकल्प परीक्षण
3.3 उत्पादकता परिवर्तन दृष्टिकोण
4. भूमि क्षरण की आर्थिकी
4.1 भारत में भूमि अवक्रमण की आर्थिक स्थिति
4.1.1 पोषक तत्वों का निष्कासन और कमी
4.1.2 तलछट और रेत का जमाव
4.1.3 तलछट की मात्रा और पानी की गुणवŸाा
4.1.4 अवसादन, बाढ़ और जलभृत पुनर्भरण
4.1.5 मृदा अपरदन और मनोरंजन क्षति
5. अनावृष्टि की आर्थिकी
6. निष्कर्ष और भविष्य की योजनाएँ
5 शुष्क क्षेत्रों के पुनर्वासन हेतु आयोजना एवं कार्यनीतियाँ
1. एक परिचय
2. मरुस्थलीकरण को रोकने के उपाय
2.1 मरू प्रसार रोक
2.2 सुरक्षा या संरक्षण
2.3 पुनर्वासन या सुधार
3. ऐतिहासिक दृष्टिकोण
3.1 सामुदायिक दृष्टिकोण
3.2 पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण
3.3 जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण
3.4 भूदृश्य दृष्टिकोण
4. क्षेत्र सुधार की कार्यनीति
4.1 क्षेत्र पुनर्वासन
4.2 पुनर्निर्माण
4.3 भूमि सुधार
4.4. प्रतिस्थापन
5. पुनर्वासन की आर्थिकी
6. कार्यात्मक दृष्टिकोण
6.1 नीतिगत हस्तक्षेप
6.2 भागीदारी योजना और प्रबन्धन
6.3 स्थान-स्तरीय निर्णय
6.4 पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यो को बनाए रखना
6.5 मानवीय हित
7. पुनःस्थापन के मार्गदर्शक सिद्धान्त
7.1 नीति उपलक्षणा
7.2 आयोजना
7.3 क्षेत्रीय स्तर पर कार्यान्वयन
7.4 प्रभावी निगरानी और मूल्यांकन
8. निष्कर्ष और सिफारिश
6 रेत के टीलों और रेतीले मैदानों वाले अवक्रमित क्षेत्रों का पुनस्र्थापन एवं भूमि-सुधार
1. प्रस्तावना
2. वायु प्रक्रिया
2.1 रेत टिब्बा गठन की प्रक्रिया
2.2 टिब्बों के प्रकार
2.3. पश्चिमी भारत में वायु अपरदन
3. रेत बहाव नियंत्रण के उपाय
3.1. रेत विस्थापन नियंत्रण के अस्थायी उपाय
3.1.1. रेत परिरक्षण
3.1.2. बाड़ या वायुरोधक
3.2. स्थायी रेत बहाव नियंत्रण प्रणाली
3.2.1 पौधों की प्रजातियाँ
3.2.2. मल्च और कम्पोस्ट खाद
3.2.3. घास बुआई
3.2.4 वृक्षारोपण
3.2.5 जल की उपलब्धता और सिंचाई
3.2.6 क्षेत्र का रखरखाव
4. वायु अपरदन नियंत्रण और आजीविका से संबंध
5. भविष्य के अनुयोजन
6. निष्कर्ष और सुझ्ााव
7 लवण एवं अपशिष्ट जल प्रभावित तथा जल आप्लावित मृदा का पुनर्वासन एवं प्रबन्धन
1. प्रस्तावना
2. लवणीय भूमि के गुण
2.1 लवणीय क्षेत्र का वितरण
2.2 लवणीय क्षेत्र के गुण
2.3 नमक संचय और मिट्टी के गुण
2.4 लवण प्रभावित भूमि में उत्पादकता नुकसान
3. लवणीय भूमि योग्य वनस्पति
4. लवणीय भूमि का पुनस्र्थापन
4.1 प्रजातियों का चुनाव
4.1.1 लवणीय भूमि हेतु प्रजातियाँ
4.1.2 क्षारीय मृदा वनीकरण हेतु प्रजाति
4.2 वृक्षारोपण और प्रबन्धन के तरीके
4.2.1 क्षेत्र की तैयारी
4.2.2 गड्ढ़े/आॅगर छेद वापस भरना
4.2.3 मृदा उपचार
4.2.4 सिंचाई
4.2.5 बेहतर जल निकासी
4.2.6 वाष्पीकरण में कमी करना
4.2.7 उर्वरकों का उपयोग
5. जल भराव वाली मृदा
5.1 जलभराव क्षेत्रों में सुधार
5.1.1 उचित जल निकासी प्रणाली
5.1.2 नलकूपों का प्रयोग
5.1.3 नहरों का अस्तरीकरण
5.1.4 प्रभावी जल प्रबंध
5.1.5 जल भराव सहनशील फसलें
5.1.6 जल भराव सहनशील वृक्ष
5.2 प्रजाति और जगह की उपयुक्तता
5.3 रोपण डिजाइन
6. अपशिष्ट जल का उपयोग
6.1 गंदे पानी की गुणवŸाा
6.2 वनीकरण के लिए प्रजाति उपयुक्तता
6.3 अपशिष्ट जल का उपयोग और उत्पादकता
7. पुनर्वास के लाभ
7.1 मिट्टी के गुणों में सुधार
7.2 उत्पादन में बढ़ोŸारी
8. निष्कर्ष और सुझ्ााव
8 गुणवŸाा युक्त बीज एवं नर्सरी प्रबन्धन
1. प्रस्तावना
2. बीज एकत्रीकरण व संग्रह
2.1 प्रजाति का चयन
2.2 बीज स्रोत
2.2.1 उŸाम गुण वाले वृक्षों का चयन
2.2.2. बीज बागान
2.3 बीज एकत्रीकरण एवं समय
2.4 बीजों की सफाई व भंडारण
2.5 बीज उपचार व अंकुरण परीक्षण
2.5.1 जल द्वारा बीज उपचार
2.5.2 गर्म जल से उपचार
2.5.3 ठण्डा व नम उपचार
3. बीज परीक्षण व अंकुरण
3.1 बीज प्रतिचयन और परीक्षण
3.1.1 बीज के नमूने
3.1.2 नमी परीक्षण
3.1.3 शुद्धता विश्लेषण
3.1.4 बीज भार निर्धारण
3.1.5 अंकुरण परीक्षण
3.1.6 अंकुरण ऊर्जा
3.2 बीज शक्ति और जीवनक्षमता
3.2.1 बीज शक्ति या ओज
3.2.2 अंकुरण वेग
3.2.3 पौध ओज सूचकांक
3.2.4 अंकुरक्षम हेतु रसायन प्रतिक्रिया परीक्षण
3.2.5 भ्रूण परीक्षण विधि
3.2.6 एक्स-रे रेडियोग्राफी
4. नर्सरी कार्य व प्रबन्धन
4.1 नर्सरी स्थल का आकार
4.2 नर्सरी की रूपरेखा व निर्माण
4.3 योजना व दस्तावेज संग्रह
4.4 क्यारियाँ व गमलों हेतु मिश्रण बनाना
4.4.1 पाॅटिंग मृदा मिश्रण
4.4.2 जल गुणवŸाा व सिंचाई
4.2 बीज बुआई व अंकुर छाटना
4.2.1. बीज बुआई
4.2.2 बुआई का समय
4.2.3 अंकुरित पौध उखाड़ना
5. जड़साधक में पौध उत्पादन
6. रोग व कीट प्रबन्धन
6.1 नर्सरी की बीमारियाँ
6.2 वन नर्सरी में कीट व रोग
6.2.1 दीमक
6.2.2 सफेद सूँडी
6.2.3 कट वर्म
6.2.4 वन नर्सरी के कम हानिकारक व साधारण कीट
6.3 नर्सरी में कीट प्रबन्धन
7. सामान्य शस्यन तकनीकें
7.1 छाया की व्यवस्था
7.2 सिंचाई
7.3 उर्वरकों का उपयोग
7.4 खरपतवार निकालना
7.5 प्ररोह की काँट-छाँट
7.6 पौधों की छंटाई
8. नर्सरी में पौध उगाने की लागत
9. निष्कर्ष व भविष्य के लिए सुझ्ााव
9 वृक्ष रोपण सामग्री सुधार एवं उपयोगिता
1. प्रस्तावना
2. आनुवांशिक वृक्ष सुधार के मूलतŸव
2.1 चयन
2.1.1 सामूहिक चयन
2.1.2 व्यक्तिगत चयन
2.2 प्रजनन
2.3 परिक्षण
3. क्रियाविधि
3.1 चयन
3.1.1 उद्गम स्रोत परीक्षण
3.1.2 बीज उत्पादन क्षेत्र का चयन
3.1.3 प्लस वृक्षों का चयन
3.2 बीज बागान
3.2.1 पौध बीज बाग और सतंति परीक्षण
3.2.2 क्लोनल बीज बाग
3.3 वानस्पतिक गुणन बाग
3.3.1 वृक्ष बीज गुणन बाग
3.3.2 अलैंगिक प्रजनन वाला वानस्पतिक गुणन बाग
3.3.4 बागान स्थापना और प्रबन्धन
3.3.5 कायिक प्रवर्धन की क्रियाविधि
3.4 क्लोनल परीक्षण
3.4.1 रोपण मानचित्र
3.4.2 पौधारोपण
3.4.3 क्लोनल टेस्ट
4 कुछ भारतीय प्रजातियों में सुधार
4.1 सागौन
4.2 बबूल प्रजाति
4.3 रोहिडा
4.4 गंभार
4.5 काला सिरिस
4.6 सफेद देवदार
4.7 शीशम
4.8 पोपलर
4.9 अरडु
4.10 सफेदा
4.11 कैजुराइना
4.12 फिलोड युक्त अकेसियाज़्ा
4.13 सुबबूल
4.14 चन्दन
4.15 सेमल
4.16 बेहुल
4.17 कचनार की प्रजातियाँ
4.18. नीम
4.19 गूगल
4.20 खेजड़ी
4.21 बांस
5 निष्कर्ष और भविष्य की कार्य नीतियाँ
10 पौध उत्पादन और रोपण तकनीकें
1. प्रस्तावना
2. पादप प्रवर्धन
2.1 वृहद प्रवर्धन द्वारा पौध उत्पादन
2.1.1 कलमों द्वारा संवर्धन
2.1.2 लेयरिंग द्वारा संवर्धन
2.1.3 ग्राफिं्टग द्वारा संवर्धन
2.1.4 बडिंग से (नवोदित कलिका से) संवर्धन
2.1.5 रूपान्तरित अंगों द्वारा संवर्धन
2.2 सूक्ष्म संवर्धन से पौध उत्पादन
2.3 पौध की गुणवŸाा
3. रोपण तकनीक
3.1 स्थल निरीक्षण एवं चुनाव
3.1.1 वातावरणीय परिस्थितियाँ
3.1.2 मृदा परिस्थितियाँ
3.1.3 स्थलाकृति
3.1.4 वनस्पतियाँ
3.1.5 भूजल स्तर व जल स्रोत
3.1.6 अन्य जैविक कारक व जानकारियाँ
3.1.7 सुरक्षा कार्य
3.2 रोपित किए जाने वाली प्रजाति का चयन
3.2.1 चलायमन रेत टिब्बे
3.2.2 रेतीले मैदान
3.3.3 उथली बलुई दोमट मृदा
3.3.4 क्षारीय लवणीय मृदा
3.2.5 रेतीले पत्थरों युक्त चट्टानी स्थल
3.2.6 अरावली की अपभ्र्रंसित पहाड़ियाँ
3.2.7 अपभ्रंसित वनभूमि
3.2.8 खान प्रभावित क्षेत्र
3.2.9 मार्ग पर रोपण
3.3 रोपण स्थल की तैयारी
3.3.1 मृदा की तैयारी
3.4 रोपण घनत्व
3.5 रोपण का विन्यास
3.6 गड्ढे की खुदाई एवं भराई
3.7 रोपण का समय
3.8 वृक्षारोपण
3.9 रोपण स्थिति
4. रोपण के बाद की देखरेख
4.1 मलिं्चग
4.2 जल संरक्षण व सिंचाई
4.3 खरपतवार नियंत्रण
5. रोपण की लागत
6. निष्कर्ष व सुझ्ााव
11 शुष्क क्षेत्र में जल प्रबन्धन और सिंचाई
1. एक परिचय
2. जल संचयन की आवश्यकता
3. वर्षा जल संचयन और उपयोग
3.1 वर्षा जल संचयन की संकल्पना
3.1.1 वर्षा
3.1.2 भूमि उपयोग या वनस्पति आच्छादन
3.1.3 स्थलाकृति और स्थलीय रूपरेखा
3.1.4 मृदा प्रकार और मृदा गहराई
3.1.5 जल विज्ञान और जल संसाधन
3.1.6 सामाजिक-आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं की स्थिति
3.2 संभावित अपवाह प्राप्ति का आकलन
4. वर्षा जल संचयन व संरक्षण
4.1 जल संचयन और उपयोग
4.1.1 पानी के भंडारण की पारंपरिक प्रणाली
4.1.2 पारंपरिक खेती
4.2 स्वःस्थाने संरक्षण के उपाय
4.2.1 सम्मोच्च खेती
4.2.2 सम्मोच्च मेड़बंदी
4.2.3 सम्मोच्च वनस्पति बाधाएं
4.2.4 फसल अवशेषों/मल्च का उपयोग
4.3 सूक्ष्म-जलग्रहण संरचनाएँ और खाइयां
4.3.1 रोपण गड्ढे
4.3.2 अर्द्ध चंद्राकार मेड
4.3.3 नेगारिम
4.3.4 बंधयुक्त सम्मोच्च टीला (नाली या मेड़)
4.3.5 सीढ़ीदार संरचना (फान्या-जू और बेंच)
4.3.6 समोच्च पत्थर मेड़/बांध
4.3.7 मृदीय मेड़ सहित बाहरी जलग्रहण क्षेत्र
4.3.8 मेड़ और नाली आवाह क्षेत्र
4.3.9 सतत समोच्च खाई
4.3.10 क्रमिक समोच्च खाई
4.3.11 ग्रेडोनी और ट-खाई
4.4 जल निकासी उपचार
4.4.1 ब्रशवुड अवरोधक
4.4.2 अर्द्ध स्थायी अवरोधक बांध
4.4.3 स्थायी अवरोधक
4.5 भूजल पुनर्भरण
4.5.1 उपसतह बांध और रेत बांध
4.5.2 एनिकट
4.5.3 रसाव टैंक
4.5.4 खेत तालाब
4.5.5 मृदा बांध और तालाब
5. सिंचाई जल प्रबन्धन
5.1 सिंचाई के तरीके
5.2 ड्रिप सिंचाई
6. मृदा और जल संरक्षण के प्रभाव
6.1 सूक्ष्म-जलग्रहण इकाई और वृक्षारोपण
6.2 अपवाह नियंत्रण और मृदा सुधार
6.3 वर्षा जल संचयन और जैव विविधता
7. निष्कर्ष और भविष्य की योजनाएँ
12 प्रवर्तित पुनरुद्भवन और बीज बुआई द्वारा शुष्क भूमि का पुनः स्थापन
1. प्रस्तावना
2. प्रवर्तित पुनरुद्भवन
3. प्रत्यक्ष बुवाई
4. बीज बुआई और नर्सरी पौध में तुलना
5. मृदा बीज बैंक
6. मुख्य प्रजातियाँ
7. पोषक पादप और उनके प्रभाव
8. सीधी बुवाई की सफलता के कारक
8.1 बीज आकार, प्रसार और बीज बैंक
8.2 बीज संग्रहण, भंडारण और उपचार
8.3 क्षेत्र चयन और तैयारी
8.4 बुआई का समय
8.5. बुवाई दर
8.6 बुवाई के तरीके
8.6.1 प्रसारण बुवाई
8.6.2 पट्टी में बुवाई
8.6.3 स्पाॅट बुवाई
8.6.4 मशीन का प्रयोग
9. अंकुरण के पश्चात देखभाल
9.1 जानवरों से बचाव
9.2 खरपतवार नियंत्रण
9.3 कीट प्रबन्धन
10. कार्य मूल्यांकन
11. निष्कर्ष व सुझ्ााव
13 वन एवं वन पौधशाला का संरक्षण और पौध रोपण के बाद की देखभाल
1. प्रस्तावना
2. वृक्ष प्रजातियों के कीट व बीमारियां
2.1. देशी बबूल (अकेशिया निलोटिका)
2.2 खेजडी (प्रोसोपिस सिनरेरीया)
2.3 विलायती बबूल (प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा)
2.4 नीम (एजाडीरेच्टा इंडिका)
2.5 रोंज (अकेशिया लिउकोफ़्लोइया)
2.6 रोहिडा (टिकोमेला अंडयुलेटा)
2.7 सलाई गुग्गल (बोसवेलिया सिरेटा)
2.8 धोंक (एनोगीसस प्रजाति)
2.9 काला सिरिस (एलबीजिया लेबेक)
2.10 इजरायली बबूल (अकैसिया टोर्टाइलिस)
2.11 कुमठ (अकेसिया सेनेगल)
2.12 बेर प्रजातियाँ (जीजिफस प्रजातियाँ)
2.13 जाल प्रजाति (साल्वाडोरा प्रजाति)
2.14 अरडु (एलैन्थस एक्सेल्सा)
2.15 कचनार प्रजातियाँ (बाहिनिया प्रजाति)
2.16 सफेदा/नीलगिरी (यूकैलिप्टस प्रजाति)
2.17 सागौन (टेक्टोना ग्रेंडिस)
2.18 गंभार (मेलाइना आरबोरिया)
2.19 शीशम (डल्बर्जिया सिसु)
3. वृक्ष बीमारियों के लक्षण व प्रबन्धन
3.1 पौधशाला में लगने वाली बीमारियाँ
3.1.1. आद्र्र पतन
3.1.2 जड़ गलन
3.1.3 चारकोल जड़ गलन
3.1.4 उखटा रोग
3.1.5 कालर गलन
3.1.6 डाइबेक
3.1.7 अंकुर अंगमारी (तुषार)
3.1.8 टहनी अंगमारी
3.1.9 पर्ण रोग
3.2. नर्सरी रोगों का प्रबन्धन
3.3. पौधशाला की कीट प्रजातियाँ
3.4. कीटों का प्रबन्धन
4. वन एवं रोपित वृक्षों की बीमारियाँ
4.1. रोगों के प्रकार
4.1.1 तना विकृति या नासूर
4.1.2 उखटा रोग
4.1.3. जड़ गलन
4.1.4. सूटी मोल्ड
4.2. रोपे गए वृक्षों में रोगों का प्रबन्धन
4.3. रोपे गए वृक्ष एवं वनीय वृक्षों के कीट
4.4. रोपित या वनीय वृक्षों में कीट प्रबन्धन
5. निष्कर्ष और सुझ्ााव
14 शुष्क क्षेत्रों में पौध वृद्धि एवं जैवभार उत्पादन
1. प्रस्तावना
2. वृद्धि एव जैवभार उत्पादन
2.1 वानस्पतिक घनत्व
2.2 मृदा जल उपलब्धता
2.3 प्रकाश की तीव्रता
2.4 वायुमंडलीय तापमान
2.5 वायुमंडलिय कार्बन डाई आक्साईड की सांद्रता
2.6 पोषक तत्व उर्वरता
2.7 समुदाय संरचना
3. वृद्धि माॅडल और जैवभार उत्पादन आकलन
3.1 वनों के मूल्यांकन की विधियाँ
3.2 आयतन और उपज सारिणी
3.2.1 आयतन सारणी के प्रकार
3.2.2 वृक्षों के आयतन की माप
3.2.3 आयतन समीकरण और उत्पादन सारिणी
3.2.4 वृक्ष वृद्धि और आयु संबंध
3.2.5 ऊँचाई - मोटाई वृद्धि माॅडल
3.2.6 आधारीय क्षेत्र वृद्धि माॅडल
3.2.7 संभावित वन क्षेत्र (ेजंदक) घनत्व
3.3 वन जैवभार का आकलन
3.3.1 जैवभार समीकरण
3.3.2 जैवभार में कार्बन की गणना
4. निष्कर्ष और भविष्य की कार्यविधियाँ
15 जन सहभागिता और वन प्रबन्धन
1. प्रस्तावना
2. वनों का अवक्रमण
2.1 भारतीय वन का इतिहास
2.2 राजस्थान वन का इतिहास
2.3 जंगल व जनसमुदाय
3. जन भागीदारी
3.1 वन प्रबन्धन स्तर
3.1.1 राज्य सरकार द्वारा प्रबन्धन
3.1.2 सामुदायिक वन प्रबन्धन
3.1.3 संयुक्त वन प्रबन्धन
3.2 सुनिश्चित सामुदायिक भागीदारी
3.2.2 सहभागिता सूचकाँक
3.2.3. जन सहभागिता में वृद्धि करना
4. वन प्रबन्धन
4.1 वन प्रबन्धन-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
4.2 वन प्रबन्धन पद्धतियाँ
4.2.1 वृक्षारोपण एवं पुनःवनरोपण
4.2.2 उपयुक्त कटाई विधि
4.2.3 वन खंड विरलन
4.2.4 छँगाई और शाखा कटाई
4.2.5 वनों की सुरक्षा
4.2.6 वन मृदा संसाधनों में सुधार
5. भारत सरकार की वानिकी योजनायें
6. निष्कर्ष और भविष्य की कार्यनीति
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